Saturday 26 December 2015

भगत सिंह पर भारी संघ प्रचारक मंगल सेन-चमन लाल-BBC Hindi

http://www.bbc.com/hindi/india/2015/12/151220_chandigarh_airport_bhagat_mangalsen_pk


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जब से केंद्र में मोदी सरकार और हरियाणा में खट्टर सरकार आई है - नई नई दिलचस्प बातें हो रही हैं. कभी मोदी और खट्टर दोनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे और चंडीगढ़ में उनका एक ही ठिकाना होता था.
जब हरियाणा में भाजपा अकेले दम पर जीत कर आई तो मोदी ने कभी विधायक न रहे मनोहर लाल खट्टर को सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया और भाजपा के रामबिलास शर्मा और अनिल विज जैसे अनुभवी नेता मुंह ताकते रह गए.
और अब खट्टर ने चंडीगढ़ हवाई अड्डे के नामकरण के लिए भगत सिंह के नाम को रद्द करके मंगल सेन का नाम केंद्र को भेज दिया है और अब लोग पूछ रहे हैं कि आख़िर ये मंगल सेन कौन है भाई जो भगत सिंह पर भी भारी पड़ रहे हैं?

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मंगल सेन पूर्व संघ प्रचारक रहे थे. वे 1947 के विभाजन के बाद आए पंजाबी शरणार्थी थे जो एक समय हरियाणा के देवीलाल मंत्रिमंडल के सदस्य रहे और 1990 में उनके देहांत के बाद लोग उनको भूल गए.
लेकिन जब खट्टर सरकार ने चंडीगढ़ हवाई अड्डे के नामकरण के लिए मंगल सेन का नाम सुझाया तो कई लोग दंग रह गए, ख़ास कर जब उनका नाम भगत सिंह के नाम को रद्द करके निकाला जाए.
चंडीगढ़ का हवाई अड्डा गृह स्तर की उड़ानों के लिए तो पहले से चल रहा था, लेकिन 2009 में इसे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की योजना बनी तो पंजाब सरकार ने इसके लिए मोहाली में ज़मीन दी और इसका नाम शहीद-ए-आज़म भगत सिंह अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मोहाली रखने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पंजाब विधान सभा से भी पारित कर दिया.

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चूंकि हवाई अड्डे के निर्माण में केंद्र सरकार का हिस्सा 51 प्रतिशत और पंजाब और हरियाणा-दोनों सरकारों का हिस्सा 24.5-24.5 प्रतिशत तक होना था.
हरियाणा की कांग्रेस की भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सरकार ने 2010 में भगत सिंह के नाम पर तो सहमति दे दी, लेकिन मोहाली की बजाए चंडीगढ़ नाम रखने की ज़िद की. इसी चक्कर में केंद्र सरकार ने हवाई अड्डे का नामकरण लटकाए रखा.
नतीजतन 11 सितंबर 2015 को प्रधानमंत्री मोदी ने बिना किसी नाम के हवाई अड्डे का उद्घाटन कर दिया, हालांकि मोहाली क्षेत्र के अकाली सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने उद्घाटन के वक़्त भी भगत सिंह के नाम पर ज़ोर दिया था.
हाल में हरियाणा के एक मंत्री अनिल विज ने भगत सिंह के नाम पर फिर सहमति जताई, ख़ुद उनको ये बात मालूम नहीं थी कि उनके मुख्यमंत्री ने बिना अपने मंत्रिमंडल को विश्वास में लिए ही भगत सिंह के नाम की सहमति को रद्द करके, चुपचाप मंगल सेन के नाम पर अड्डा घोषित करने की सिफ़ारिश केंद्र सरकार को भेज दी है.

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ये बात भी छिपी रहती अगर पंजाब के कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने संसद में इस बारे में सवाल न पूछ लिया होता और 3 दिसंबर 2015 को लोकसभा में नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री महेश शर्मा के जवाब से बात न खुलती.
बिट्टू ने कहा कि अगर भगत सिंह के नाम पर हवाई अड्डे का नाम न रखा गया तो वे आंदोलन करेंगे. अकाली सांसद चंदूमाजरा ने भी पंजाब सरकार की सिफ़ारिश पर फिर ज़ोर दिया. लेकिन खट्टर पर जूं तक न रेंगी.
तब पटियाला के आम आदमी पार्टी सांसद धर्मवीर गांधी और वाम दलों के तमाम सांसदों ने सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी के नेतृत्व में 17 दिसंबर को संसद भवन के सामने और संसद भवन के भीतर भगत सिंह की प्रतिमा के सामने विरोध प्रदर्शन कर हरियाणा सरकार की निंदा की और भगत सिंह के नाम पर चंडीगढ़ हवाई अड्डे का नाम रखने की मांग की.


इस बीच सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने राष्ट्रीय बहस का रूप ले लिया. उधर आप पार्टी सांसद धर्मवीर गांधी ने 16 दिसंबर को लोकसभा के अंदर अपनी सीट पर खड़े होकर हाथ में पोस्टर लेकर विरोध जताया कि 'शहीदों' का अपमान सहन नहीं किया जाएगा.
वैसे देखें तो मनोहरलाल खट्टर का व्यवहार भी अस्वाभाविक या आश्चर्यजनक नहीं है. क्योंकि वे प्रतिबद्ध संघ कार्यकर्ता हैं और संघ का भारत की आज़ादी की लड़ाई में कोई हिस्सा है नहीं, इसलिए उनके मन में भगत सिंह का सम्मान क्यों होने लगा?

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हालांकि संघ ने 2007 में अपने मुख पत्र ‘पांचजन्य’ का भगत सिंह जन्म शताब्दी पर ‘विशेषांक’ निकाल कर भगत सिंह को अपने खाते में डालने की कोशिश की थी, लेकिन संघ अपनी सरकार होते हुए भगत सिंह को सरकारी स्तर पर कैसे सम्मानित कर सकता है, उसके लिए तो कोई प्रचारक ही इसका हक़दार हो सकता है, फिर वह चाहे मंगल सेन ही क्यों न हो, जिसका नाम तक संघ के बाहर कोई नहीं जानता और शायद संघ के अंदर भी नई पीढ़ी के लोग न जानते हों.
(ये लेखक के निजी विचार हैं )