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'पाकिस्तान आज भगत सिंह को खोज रहा है' | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पहले तो 1947 और उसके लंबे अरसे बाद तक सियासी हालातों की वजह से पाकिस्तान में भगत सिंह का नाम इतना ज़्यादा सुनने को नहीं मिलता था. बँटवारे के वक्त जैसे हालात रहे, उनमें जिन लोगों को रोलमॉडल बनाया गया वो बहुत बाद के लोग थे. भगत सिंह के ज़माने पर तो नज़र ही नहीं गई लोगों की. यहाँ तक कि हमने अपनी पढ़ाई-लिखाई के दौरान भी उनका ज़िक्र किसी किताब में नहीं देखा. यह बात और थी कि हमारे घर सहित कई ऐसे घर थे जिनमें सियासी मामलों की समझ थी और पंजाब के नाते भी भगत सिंह को याद किया जाता था. बकौल फ़ैज़ साहेब (मेरे पिताजी), वो उन दिनों गवर्नमेंट कॉलेज के हॉस्टल में थे और एक दिन सुबह जब वो छत पर थे, उन्होंने गोली चलने की आवाज़ सुनी और फिर तीन नौजवानों को तेज़ी से जाते हुए देखा. बाद में उन्हें पता चला कि ये तीन लोग भगत सिंह और उनके साथी थे जिन्होंने एक अंग्रेज़ अधिकारी की हत्या कर दी थी. बाद में अपने जन्म के बाद मैंने अब्बू को अक्सर यह कहते सुना कि हमारा जो जवानी के दिनों का हीरो था, वो भगत सिंह था. कितने रहे याद... पाकिस्तान की जो सियासी और सामाजिक ज़िंदगी रही है, उसमें इस तरह के लोगों को बहुत अहमियत नहीं दी गई लेकिन अब पिछले 10-15 बरसों में इनके बारे में लिखा-कहा जाने लगा है और लोगों की रुचि, जिज्ञासा भी इनकी तरफ़ बढ़ रही है.
आज भगत सिंह के जन्म स्थल (लायलपुर, पाकिस्तान के चक नंबर-105) पर लोग जाने लगे हैं, वहाँ और उसके रास्ते में भगत सिंह की तस्वीरें लगी हैं. हालांकि जिस जगह पर उन्हें फाँसी दी गई थी, उस फाँसीघाट को अंग्रेज़ी हुकूमत के समय में ही मिटा दिया गया था और अब वहाँ एक हाउज़िंग सोसाइटी बन गई है. अंग्रेज़ नहीं चाहते थे कि इतने लोकप्रिय व्यक्ति की शहादत का कोई निशान बचे और लोग उसे यादगार बना सकें. आज उस जगह पर एक चौक है जिसे शादवान चौक बुलाया जाता है. आज पाकिस्तान के कई बुद्धिजीवियों के अलावा आम लोग भी चाहते हैं कि इस चौराहे पर भगत सिंह की याद में कोई स्मारक जैसी चीज़ होनी चाहिए. ऐसा इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि पाकिस्तान की आज की नौजवान नस्ल को तो मालूम ही नहीं कि उस जगह पर कोई जेल और फाँसीघाट था जिसके साथ एक बड़ा इतिहास जुड़ा हुआ है. सियासी कोशिशें दोनों ओर की सियासतों ने लंबे अरसे तक भगत सिंह के बारे में लोगों को कुछ नहीं बताया. 80 के दशक में कुछ काम हुआ और फिर उनकी लिखी-कही बातें सामने आना शुरू हुईं. इसकी वजह यह है कि सियासत शायद कभी भी एक सीधा मोर्चा लेने वाले इंसान के बारे में लोगों को नहीं बताना चाहेगी.
मेरी समझ में अंग्रेज़ ये देश छोड़कर गए ही नहीं. वो ख़ुद तो गद्दी से हटे पर अपने लोगों को बैठा गए. सियासी तौर-तरीके और व्यवस्था का ढाँचा आज भी वैसा ही है. भगत सिंह जैसे लोगों को आज भी वैसे ही देखा जाता है जैसे तब देखा जाता था. भगत सिंह को हर पार्टी, हर तरह की सोच अलग तरीके से परखती है और अपनी सुविधा के हिसाब से उनकी बातों को स्वीकार करते चलते हैं. भगत सिंह होते तो क्या देश बँटता... भगत सिंह ने विभाजन नहीं देखा. वो 1931 में ही चले गए. पर वो सही वक्त था जब वो चले गए. उनकी एक युवा क्रांतिकारी के रूप में फाँसी ने ही उनको इतना चर्चित बनाया और उनका मकसद भी यही था कि उनकी कुर्बानी से प्रेरित होकर और भगत सिंह पैदा हों.
भगत सिंह ही नहीं, उनके दौर में किसी नेता के मन में विभाजन जैसी कोई बात थी ही नहीं. वो तो बस देश को आज़ाद कराना चाहते थे. यह कह पाना मुश्किल है कि भगत सिंह इस बारे में क्या सोचते पर भगत सिंह की जो सोच थी, उससे इतना कहा जा सकता है कि वो विभाजन को स्वीकार नहीं करते. केवल भगत सिंह ही नहीं, कोई भी नेता अगर विभाजन के बाद की स्थितियों का अनुमान लगा पाता तो शायद विभाजन न होने देता. इतने ख़ून-ख़राबे का तो किसी को भी अंदाज़ा नहीं था. याद करो कुर्ब़ानी
पाकिस्तान के लिए आज का दौर भगत सिंह को खोजने-जानने का है. हम उनकी डिस्कवरी कर रहे हैं और पाकिस्तान की युवा पीढ़ी के लिए तो यह एक बहुत बड़ी डिस्कवरी होगी. भारत इस मामले में कुछ आगे चल रहा है क्योंकि भारत में भगत सिंह पर बनी हिंदी फ़िल्मों ने एक बड़ी भूमिका निभाई है. हालांकि उनपर बहुत अच्छी फ़िल्में नहीं बनी हैं पर जो भी बनीं, उनसे भगत सिंह के बारे में लोगों को जानने का मौका तो मिला ही. जितना कुछ होना चाहिए और मिलजुलकर जो होना चाहिए उसके आसार अभी भी कम ही नज़र आते हैं. फिर भी यह बहुत अच्छा मौक़ा है कि हाथ बढ़ाकर और मिलकर भगत सिंह को याद किया जाए. हम लोगों की ओर से जो कुछ भी आयोजन हो रहे हैं, सरहद के उस पार से (भारत से) सहयोग लेकर किए जा रहे हैं. (प्रोफ़ेसर सलीमा हाश्मी पाकिस्तान के मशहूर उर्दू शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की बेटी हैं. यह लेख बीबीसी संवाददाता पाणिनी आनंद से उनकी बातचीत पर आधारित है) |
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Bhagat Singh Study is a blog to know about great Indian martyr Bhagat Singh and other revolutionaries of the world, who played a historic role in shaping the destiny of Indian nation and the world. Bhagat Singh and Che Guevara like revolutionaries are the icons of youth, who wish to change the world. In this blog there are photographs, documents and research material about Bhagat Singh and other revolutionaries of the world.
Sunday, 20 January 2008
Salima Hashmi on Bhagat Singh
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