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साम्यवाद से प्रभावित थे भगत सिंह | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भगत सिंह ने अपने पूरे संघर्ष में एक बात का ख़ास ख्याल रखा कि वो अपनी बातों को दर्ज करते जाएं ताकि उनके बाद उनके नाम पर ग़लत लोग फ़ायदा न उठाएं. 40 बरसों तक, जबतक उनकी कही बातें सामने नहीं आईं, लोग उनका अपनी-अपनी तरह से लाभ उठाते रहे पर अब यह स्पष्ट हो चुका है कि भगत सिंह मार्क्सवाद और सोवियत रूस से प्रभावित थे और उसी तरह का व्यवस्था परिवर्तन देश में भी चाहते थे. स्वाधीनता आंदोलन में एक धारा को (कांग्रेस) अधिक महत्व मिला क्योंकि उनका सत्ता हस्तांतरण में बड़ा योगदान था और यह हमेशा से होता आया है कि जो प्रभावशाली हैं, उन्हीं का इतिहास ज़्यादा लिखा-गाया जाता है. ऐसा भगत सिंह के आंदोलन के साथ ही नहीं बल्कि वर्ष 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद से आज़ादी मिलने तक की बाक़ी की धाराएं, जो कांग्रेस से अलग थीं, उनके साथ होता रहा. इन धाराओं में आदिवासी, दलित, बुद्धिजीवी, युवा, किसान, मजदूर और मध्यवर्ग के लोग भी देश के कोने-कोने से शामिल थे. भगत सिंह को एक स्तर पर तो उपेक्षा नहीं मिली पर जिस तरह से उन्हें दिखाया गया उसमें इतना भर था कि वो एक बहादुर व्यक्ति थे जो देश के लिए प्राण न्यौछावर कर गए. इसपर राष्ट्रवादी धाराओं ने लगभग चार दशकों तक ध्यान नहीं दिया कि वो क्या कहना चाहते थे और क्या उनकी सोच थी. भगत सिंह क्रांतिकारी धारा के सबसे बड़े नायकों में हैं क्योंकि उनका चिंतन बहुत विकसित था. भगत सिंह पहले ऐसे भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने तर्क दिया था कि साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद एक पूरी व्यवस्था है. इस सोच के बनने में रूस की क्रांति और समाजवादी विचारधारा का बड़ा योगदान था और भगत सिंह उन प्रारंभिक लोगों में हैं जिन्होंने उस साहित्य को पढ़ रहे थे और समझ रहे थे. विडंबना यह है कि भगत सिंह के इस रेखांकन को बताने में भारतीय इतिहासकारों को 40 बरस से ज़्यादा समय लग गया. दक्षिणपंथियों का खोखला दावा भगत सिंह पर आजकल दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भी अपनी दावेदारी करने लग गए हैं और उन्हें केसरिया रंग में रंगने की कोशिश कर रहे हैं. भगत सिंह की जन्मशताब्दी पर उनकी ओर से हो रहे आयोजन इस बात का एक प्रमाण है.
आज अगर भगत सिंह होते तो सबसे पहले इन सांप्रदायिक और जातिवादी व्यवस्था को बढ़ावा देने वाले लोगों का विरोध करते. भगत सिंह का इनसे कोई संबंध हो सकता है, इस बात का कोई सिर-पैर नहीं है. अगर दक्षिणपंथी कहते हैं कि वे भगत सिंह को मानते हैं तो उनकी कही बातों को अपनाना शुरू करें. भगत सिंह ने कहा था कि वो नास्तिक हैं. उन्होंने इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा दिया था. उन्होंने साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को ख़त्म करने की बात कही थी. मार्क्सवाद पर आधारित लेख- लेटर टू यंग पॉलिटिकल वर्कर्स में उन्होंने युवाओं को संबोधित किया था. उन्होंने आधुनिक-वैज्ञानिक समाजवाद की बात की थी. क्या संघ या अन्य दक्षिणपंथी भगत सिंह की इन बातों को अपना सकते हैं. अगर नहीं, तो फिर दावेदारी क्यों करते हैं. ख़ुद को भगत सिंह से क्यों जोड़ते हैं. क्यों उन्हें नेकर पहनाने या भगवा रंग देने की कोशिश की जा रही है. भगत सिंह वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे, उनके लेखन और विचारों से इस बात में कोई संदेह शेष नहीं रह जाता है. वो लेनिन से और रूस की क्रांति से कितने प्रभावित थे, इसका इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ज़िंदगी के कुछ दिन बचने पर उन्होंने लेनिन को ही पढ़ने-जानने का काम किया. कांग्रेस और भगत सिंह भगत सिंह क्रांतिकारियों की उस धारा का नेतृत्व करते थे जो कांग्रेस की विचारधारा से बिल्कुल भिन्न थी.
भगत सिंह की तरह कुछ दूसरे इतिहास कार भी यह मानते रहे हैं कि कांग्रेस का आंदोलन ब्रितानी उपनिवेशवाद से समझौते के तहत आज़ादी पाने का था. भगत सिंह भारत के लिए भी सोवियत रूस जैसा व्यवस्था परिवर्तन चाहते थे पर कांग्रेस में कई ज़मीदार और पूँजीपति शामिल थे. ऐसे में व्यवस्था परिवर्तन की बात को कांग्रेसी विचारधारा सामने लाने से बचती रही. इसमें कांग्रेस के सामने एक ख़तरा यह भी था कि सोवियत रूस के प्रयोग को विदेश मॉडल कहकर तो खारिज किया जा सकता था पर गांधी के बराबर आ चुके भगत सिंह की ओर से अगर यह बात लोगों तक पहुँचती तो देश में कांग्रेसी मॉडल के बजाय एक जनतांत्रिक समाजवादी क्रांति के लिए लोग खड़े हो सकते थे. इसीलिए कांग्रेस ने उन्हें खारिज तो नहीं किया पर उन्हें सीमित दायरे में रखा. कांग्रेस की दूसरी दिक्कत यह रही कि कांग्रेस के अधिकतर नेता ब्रिटेन से पढ़कर आए थे और उनके लिए ब्रितानी लोकतंत्र का मॉडल ही एक आदर्श मॉडल था और वे भारत में भी उसी प्रकार की व्यवस्था चाहते थे. हालांकि नेहरू लेबर पार्टी के प्रभाव के चलते भगत सिंह के विचार से कुछ सहमत तो थे पर अकेले पड़ गए थे. बात इतनी भर है कि भगत सिंह का लेखन, उनकी कही बातें ही तय कर सकते हैं कि वो कांग्रेसी थे, हेडगेवारवादी थे, खालिस्तानी थे, क्रांतिकारी थे तो कैसे क्रांतिकारी थे वगैरह वगैरह... इन तथ्यों के आधार पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि भगत सिंह समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा में विश्वास करने वाले क्रांतिकारी व्यक्ति थे और व्यवस्थापरिवर्तन और समतामूलक समाज बनाने में विश्वास रखते थे. (भारत और पाकिस्तान में इन दिनों भगत सिंह की जन्मशताब्दी पर उन्हें याद किया जा रहा है. यह लेख बीबीसी संवाददाता पाणिनी आनंद से बातचीत पर आधारित है) |
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Bhagat Singh Study is a blog to know about great Indian martyr Bhagat Singh and other revolutionaries of the world, who played a historic role in shaping the destiny of Indian nation and the world. Bhagat Singh and Che Guevara like revolutionaries are the icons of youth, who wish to change the world. In this blog there are photographs, documents and research material about Bhagat Singh and other revolutionaries of the world.
Sunday, 20 January 2008
BBC Hindi Articles
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1 comment:
its good but not useful
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