Wednesday, 4 April 2018

पाकिस्तान में कैसे याद किए जाते हैं भगत सिंह? नवीन नेगी

भगत सिंहइमेज कॉपीरइटBBC/PUNEET
मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला...
आज़ादी के इस तराने के साथ जो तस्वीर हमारी आंखों के सामने उभरती है, वह तीन युवाओं की है जो हंसते हुए फांसी की तरफ़ अपने कदम बढ़ाए चले जा रहे हैं.
लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फ़ांसी दी गई थी. उन पर इल्ज़ाम था कि उन्होंने एक ब्रितानी अधिकारी की हत्या की थी.
लेकिन भगत सिंह की पहचान सिर्फ एक देशभक्त क्रांतिकारी तक ही सीमित नहीं है, वो एक आज़ाद ख्याल व्यक्तिव थे. वो न तो कांग्रेसी थे और न ही कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य. लेकिन उनकी क्रांतिकारी विचारधारा पर किसी को शक़ नहीं था.
1928 में भगत सिंह जब 21 साल के थे, तब 'किरती' नामक पत्र में उन्होंने 'नए नेताओं के अलग-अलग विचार' नाम से एक लेख लिखा था.
नेशनल कॉलेज लाहौर, भगत सिंह, शहीद दिवस, 23 मार्च
Image captionनेशनल कॉलेज लाहौर की फ़ोटो. पगड़ी पहने भगत सिंह (दाहिने से चौथे) खड़े नज़र आ रहे हैं (तस्वीर प्रोफ़ेसर चमनलाल ने उपलब्ध करवाई है)

भगत सिंह की केवल चार तस्वीरें मौजूद

वे असहयोग आंदोलन की असफलता और हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों की मायूसी के बीच उन आधुनिक विचारों की तलाश कर रहे थे जो नए आंदोलन की नींव के लिए ज़रूरी था.
मौजूदा वक़्त में भगत सिंह की तस्वीरों को तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने हितों के अनुसार गढ़ते चले जा रहे हैं. लेकिन वास्तव में भगत सिंह की कितनी तस्वीरें मौजूद हैं, इस पर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चमनलाल कुछ इस तरह रौशनी डालते हैं.
प्रोफ़ेसर चमनलाल कहते हैं, "असलियत यह है कि उनकी जो असली तस्वीर है वो केवल चार हैं. उसमें एक 10-11 साल के बच्चे की उम्र की हैं जिसमें वो पगड़ी पहने हुए हैं. दूसरी कॉलेज की ग्रुप फ़ोटो है, करीब 17 साल के उम्र की जिसमें भी पगड़ी पहने हुए हैं.
तीसरी तस्वीर 20 साल के उम्र की है जिसमें वो चारपाई पर बैठे हैं. केस खुले हैं. यह तस्वीर 1927 की है. और चौथी तस्वीर दिल्ली के कश्मीरी गेट पर एक फ़ोटोग्राफ़र ने खींची थी. ये हैट वाला फ़ोटोग्राफ़ है. इस फ़ोटोग्राफ़र ने अदालत में यह बयान भी दिया था कि "हां, मैंने इनकी तस्वीरें खींची थीं."
भगत सिंह की भूख हड़ताल का पोस्टर जिस पर उनके ही नारे छपे हैं. इसे नेशनल आर्ट प्रेस, अनारकली, लाहौर ने प्रिंट किया थाइमेज कॉपीरइटWWW.SUPREMECOURTOFINDIA.NIC.IN/BBC
Image captionभगत सिंह की भूख हड़ताल का पोस्टर जिस पर उनके ही नारे छपे हैं. इसे नेशनल आर्ट प्रेस, अनारकली, लाहौर ने प्रिंट किया था

राजनीतिक दलों के लिए भगत सिंह की तस्वीरों के मायने

भगत सिंह की तस्वीरों को तो सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी विचारधाराओं के अनुरूप गढ़ लिया लेकिन उनके क्रांतिकारी विचारों को परे रख दिया गया. किसी ने उन पर गेरुए वस्त्र डाल दिए, तो किसी ने उन्हें भारत की सभ्यता का संरक्षक बना डाला.
भगत सिंह के नास्तिकत होने पर विचार हों या फिर समाजवाद से जुड़े उनके लेख, कोई भी दल इन पर गौर करने की कोशिश नहीं करता.

आखिर इसकी वजह क्या है

प्रोफेसर चमनलाल बताते हैं, "पिछले 15-20 सालों में समाज में एक टुकड़ा ऐसा हुआ है जो चाहता है कि भगत सिंह का जो वैचारिक रूप है, जो उनका बौद्धिक रूप है और उनका चिंतक क्रांतिकारी रूप लोगों के सामने आए ही नहीं. उनकी 125 लिखाई, बयान और लेख हैं. सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज, अछूत समस्या जैसे मुद्दे पर उनके विचार हैं. कई सामाजिक विषय हैं जो आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं. इसे सामने नहीं आने देने वाले लोगों का इसमें निजी स्वार्थ है."
असेंबली बम केस में भगत सिंह के खिलाफ उर्दू में लिखा गया एफआईआरइमेज कॉपीरइटWWW.SUPREMECOURTOFINDIA.NIC.IN/BBC
Image captionअसेंबली बम केस में भगत सिंह के खिलाफ उर्दू में लिखा गया एफआईआर

सरहद पार भी हैं चाहने वाले

भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें चाहने वाले जितने सरहद के इस पार मौजूद हैं तो उतने ही सरहद की दूसरी तरफ भी.
पाकिस्तान में भी भगत सिंह की याद में हर साल 23 मार्च को ख़ास कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. भगत सिंह के जन्म बंगा नाम के जिस गांव में हुआ था, वह पाकिस्तान में ही है. सरहद पार तमाम लोग इकट्ठा होते हैं और भगत सिंह को याद करते हैं.
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन नाम का एक संगठन भगत सिंह की यादों को पाकिस्तान में संजोने का काम कई सालों से करता आ रहा है.
इस संगठन के अध्यक्ष इम्तियाज़ कुरैशी ने बताया, "भगत सिंह की पाकिस्तान में बहुत इज़्ज़त है. यहां उनके बहुत दीवाने हैं. उनके पिता, दादा का बनाया हुआ घर आज भी पाकिस्तान में मौजूद है. उनके दादा अर्जुन सिंह ने 120 साल पहले जो आम का पेड़ लगाया था, वो आज भी मौजूद है. उनके गांव का नाम बदल कर भगतपुरा रख दिया गया है. हर साल 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहीदी दिवस मनाया जाता है."
भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह (तस्वीर चमनलाल ने उपलब्ध करवाई है)
Image captionभगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह (तस्वीर चमनलाल ने उपलब्ध करवाई है)

'भगत सिंह का कत्ल हुआ'

भगत सिंह मेमोरयिल फाउंडेशन ने दो साल पहले लाहौर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने भगत सिंह की फ़ांसी का मुकदमा दोबारा खोलने की बात कही थी.
इस फाउंडेशन का मानना है कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ग़लत मुक़दमे के तहत फ़ांसी दी गई और वे इस मामले में ब्रिटिश हुकूमत से माफ़ी की मांग भी की थी.
इम्तियाज कहते हैं, "ब्रिटिश हुकूमत ने भगत सिंह का अदालती कत्ल किया था. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का नाजायज़ खून बहाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत को माफ़ी मांगनी चाहिए."
फांसी के इतने साल गुज़र जाने के बाद भी भगत सिंह की तस्वीर एक ऐसे शख़्स के रूप में उभरती है जिसने हर दिल का अजीज है. फ़र्क़ बस इतना है कि जिसकी भावना जैसी हो उसने भगत सिंह की छवि वैसी ही गढ़ ली है.

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