English translation of BBC post:
Politics of Changing looks of Bhagat Singh’s
face
I
have in my collection more than two hundred photographs of monuments of Bhagat
Singh, which includes photographs of statues, his displayed photographs in books/journals/offices
etc. These photographs are clicked from different parts of India and abroad,
including Mauritius, Fiji, USA, Canada etc. More than ninety percent of these
photographs are his famous and most popular photograph with hat, which was clicked
by photographer Sham Lal of Kashmere gate Delhi on 3rd April 1929.
Sham Lal’s statement in this regard is part of Lahore Conspiracy case
proceedings. But for the last few years and this year even more, there has been
a competition among media, particularly electronic media to distort Bhagat
Singh’s real picture/photographs and present his face with distorted yellow
turbaned painting by unknown painter/s.
There are four real photographs of Bhagat Singh(Attached in file), which
were taken at 1. About 11 years, sitting on chair at home in white clothes; 2.
Of about sixteen years in a drama group of National College Lahore with white
Kurta Pyjama and white turban; 3. Sitting at a cot with open hair without
turban in somewhat dishevelled shape of about twenty years in 1927, a police
officer in civil clothes is interrogating him, sitting on chair and 4. The last
photograph as mentioned above of little less than 22 years taken at Delhi. No
other photograph has been found yet either in family or in govt.;jai/court
records. How come that not his real, but imagined/distorted painting based
photograph becomes viral on electronic media?
Till seventies, it was Bhagat Singh with hat photograph, which remained
viral anywhere and everywhere in India and abroad. It is only in seventies that
the distortions/disfiguring of Bhagat Singh’s facial look began. Incidentally,
not only in India, nowhere in world, there could be such disfiguring of a
historic personality’s face in such brazen manner as has been done with Bhagat
Singh’s face. Punjab Government, some political groups of Punjab are primarily
responsible for committing this blasphemy with Bhagat Singh’s real face, if one
could use this term in dealing with secular personalities!
On
23rd March 1965, when then home minister of India Y.B.Chavan, laid a
foundation stone of Bhagat Singh-Rajguru-Sukhdev memorial at Hussainiwala near
Ferozepur, which has been now turned into an annual ritualistic place for most
of the parties/leaders to visit and hypocritically garland the statues, while
suppressing the ideas for which they sacrificed their lives.
In
fact, the real reason of disfiguring Bhagat Singh’s face and turning him into
statue with distorted painting, under which his revolutionary ideas are buried
by ruling parties of India, is to keep youth and the people away from his
ideas, while exploiting common people’s love and respect for the supreme
martyrs for their vote catching agenda! U K Based Punjabi poet Amarjit Chandan
has reproduced Khatkar Kalan statue photograph of 1973, where then chief
minister of Punjab, Giani Zail Singh, who later became President of India is
garlanding Bhagat Singh statue with hat, Kultar Singh, younger brother of
Bhagat Singh is looking. M S Gill, who later became Central minister, used to
take pride in saying that ‘he is the one who got turban and Kada(Iron
bracelet-a Sikh sign) put on the statue’! One can easily see the design here-to
turn socialist revolutionary atheist Bhagat Singh into a symbol of ‘Sikh hero’!
In these very days, Bhagat Singh’s revolutionary writings, which were in print
since 1924 in different magazines/journals, started getting published into
booklet/book forms, revealing the revolutionary thinker personality of the
hero! By eighties, major collections of Bhagat Singh came into print in Hindi,
Punjabi and English with introduction of eminent historian like Prof. Bipan
Chandra, proving him to be an enlightened Socialist/Marxist thinker. That
alarmed the rightist religious fundamentalist groups/parties in Indian society.
Since India is still not in a stage of educational/intellectual development of
common people, whereby people could decide/think/imagine historic personalities
on the basis of their writings, it was easy to stuff their minds with
disfigured/distorted images of Bhagat Singh’s face with yellow turban, pistol
in hand or with a bomb, with apparent admiration for their ‘bravery’/
‘patriotism’! That is what is being conspired to suppress the libratory ideas
of a great international thinker revolutionary by focusing on his
disfigured/distorted face with aggressive media blitzkrieg!
·
Chaman Lal is retired
Professor from Jawaharlal Nehru University(JNU), New Delhi and editor of Documents/Writings of Bhagat Singh, also
author of few books on him in Hindi, Punjabi and English, which have been
translated in Urdu, Marathi and Bengali.
भगत सिंह को पीली पगड़ी किसने पहनाई?
चमन लालरिटायर्ड प्रोफ़ेसर, जेएनयू, दिल्ली
·
29 मार्च 2015
मेरे पास भगत सिंह से जुड़ी 200 से ज़्यादा तस्वीरें हैं. इनमें उनकी प्रतिमाओं के अलावा
किताबों और पत्रिकाओं में छपी और दफ़्तर वगैरह में लगी तस्वीरें शामिल हैं. ये
तस्वीरें भारत के अलग अलग कोनों के अलावा मारिशस, फिजी, अमरीका और कनाडा
जैसे देशों से ली गई हैं.
इनमें से ज़्यादा तस्वीरें भगत सिंह की इंग्लिश हैट वाली
चर्चित तस्वीर है, जिसे
फ़ोटोग्राफ़र शाम लाल ने दिल्ली के कश्मीरी गेट पर तीन अप्रैल, 1929 को खींची थी. इस बारे में शाम लाल का बयान लाहौर षडयंत्र
मामले की अदालती कार्यवाही में दर्ज है.
लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भगत सिंह की वास्तविक
तस्वीरों को बिगाड़ने की मानो होड़ सी मच गई है. मीडिया में बार-बार भगत सिंह को
किस अनजान चित्रकार की बनाई पीली पगड़ी वाली तस्वीर में दिखाया जा रहा है.
पढ़ें लेख विस्तार से
भगत सिंह (बाएँ से दाएँ)11 साल, 16 साल, 20 साल और क़रीब 22 साल की उम्र की तस्वीरें. (सभी तस्वीरें चमन लाल ने उपलब्ध
कराई हैं.)
भगत सिंह की अब तक ज्ञात चार वास्तविक तस्वीरें ही उपलब्ध
हैं.
पहली तस्वीर 11 साल की उम्र में
घर पर सफ़ेद कपड़ों में खिंचाई गई थी.
दूसरी तस्वीर तब की है जब भगत सिंह क़रीब 16 साल के थे. इस तस्वीर में लाहौर के नेशनल कॉलेज के ड्रामा
ग्रुप के सदस्य के रूप में भगत सिंह सफ़ेद पगड़ी और कुर्ता-पायजामा पहने हुए दिख
रहे हैं.
तीसरी तस्वीर 1927 की है, जब भगत सिंह की उम्र क़रीब 20 साल थी. तस्वीर
में भगत सिंह बिना पगड़ी के खुले बालों के साथ चारपाई पर बैठे हुए हैं और सादा
कपड़ों में एक पुलिस अधिकारी उनसे पूछताछ कर रहा है.
चौथी और आखिरी इंग्लिश हैट वाली तस्वीर दिल्ली में ली गई है
तब भगत सिंह की उम्र 22 साल से थोड़ी ही
कम थी.
इनके अलावा भगत सिंह के परिवार, कोर्ट, जेल या सरकारी
दस्तावेज़ों से उनकी कोई अन्य तस्वीर नहीं मिली है.
आखिर क्यों?
वाईबी चव्हाण, भगत सिंह की प्रतिमा का शिलान्यास करते हुए. (तस्वीर चमन
लाल ने उपलब्ध करवाई है.)
आख़िरकार, भगत सिंह की
काल्पनिक और बिगाड़ी हुई तस्वीर इलेक्ट्रानिक मीडिया में वायरल कैसे हो गई?
1970 के दशक तक देश हो
या विदेश, भगत सिंह की हैट
वाली तस्वीर ही सबसे अधिक लोकप्रिय थी. सत्तर के दशक में भगत सिंह की तस्वीरों को
बदलने सिलसिला शुरू हुआ.
भगत सिंह जैसे धर्मनिरपेक्ष शख्स के असली चेहरे को इस तरह
प्रदर्शित करने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार पंजाब सरकार और पंजाब के कुछ गुट हैं.
23 मार्च, 1965 को भारत के तत्कालीन गृहमंत्री वाईबी चव्हाण ने पंजाब के
फ़िरोजपुर के पास हुसैनीवाला में भगत सिंह, सुखदेव और
राजगुरु के स्मारक की बुनियाद रखी. अब यह स्मारक ज़्यादातर राजनेताओं और पार्टियों
के सालाना रस्मी दौरों का केंद्र बन गई है.
विचारों से दूरी
दरअसल भारत की सत्ताधारी पार्टियाँ भगत सिंह की बदली हुई
तस्वीरों के साथ उन्हें एक प्रतिमा में बदलकर उसके नीचे उनके क्रांतिकारी विचारों
को दबा देना चाहती हैं, ताकि देश के युवा
और आम लोगों से उनसे दूर रखा जा सके.
ब्रिटेन में रहने वाले पंजाबी कवि अमरजीत चंदन ने वो तस्वीर
शाया की है, जिसमें 1973 में खटकर कलाँ में पंजाब के उस समय के मुख्यमंत्री और बाद
में भारत के राष्ट्रपति बने ज्ञानी जैल सिंह भगत सिंह की हैट वाली प्रतिमा पर माला
डाल रहे हैं. भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह भी उस तस्वीर में हैं.
भारत के केंद्रीय मंत्री रहे एमएस गिल बड़े ही गर्व के साथ
कहते सुने गए हैं कि उन्होंने ही प्रतिमा में पगड़ी और कड़ा जोड़ा था. यह समाजवादी
क्रांतिकारी नास्तिक भगत सिंह को 'सिख नायक' के रूप में पेश करने की कोशिश थी.
क्रांतिकारी छवि
भगत सिंह के क्रांतिकारी लेख 1924 से ही विभिन्न अख़बारों, पत्रिकाओं में
प्रकाशित होते रहे हैं. इस समय उनके लेख किताबों, पुस्तिकाओं, पर्चों वगैरह के रूप में छप रहे हैं, जिनसे इस नायक की क्रांतिकारी छवि उभर कर सामने आती है.
अस्सी के दशक तक भगत सिंह का लेखन हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी में छप चुका था, जिसकी भूमिका बिपिन चंद्रा जैसे प्रसिद्ध इतिहासकार ने लिखी
थी.
उनके लेखन से यह प्रमाणित हो गया कि वो एक समाजवादी और मार्क्सवादी
विचारक थे. इससे भारत के कट्टरपंथी दक्षिणपंथी धार्मिक समूहों के कान खड़े हो गए.
मीडिया की साज़िश?
भगत सिंह को बहादुर और देशभक्त बताने के लिए उन्हें पीली
पगड़ी में दिखाना ज्यादा आसान समझा गया.
यह उग्र मीडिया प्रचार के जरिए भगत सिंह की बदली गई छवि के
ज़रिए एक अंतरराष्ट्रीय क्रांतिकारी विचारक के मुक्तिकामी विचारों को दबाने की
साज़िश है.
(चमन लाल जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के
सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेजों का संपादन
किया है. वो हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेजी में भगत सिंह पर किताबें लिख चुके हैं
जिनका उर्दू, मराठी और बांग्ला इत्यादि में अनुवाद हो चुका है.)
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